हरिद्वारः उत्तराखंड के धाक्कड़ मुख्यमंत्री पुष्कर धामी की सरकार ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वह भ्रष्टाचार को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेगी। हरिद्वार में सामने आए बहुचर्चित भूमि घोटाले में बड़ी कार्रवाई करते हुए सरकार ने तीन वरिष्ठ अधिकारियों को निलंबित कर दिया है। इस कार्रवाई के तहत देहरादून के जिलाधिकारी कर्मेंद्र सिंह, आईएएस अधिकारी वरुण चौधरी, और पीसीएस अधिकारी जयवीर सिंह को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है।
हरिद्वार जमीन घोटाले में धामी सरकार ने बड़ी कार्रवाई की है। मामले में दो आईएस और एक पीसीएस अफसर समेत कुल 12 लोगों को सस्पेंड कर दिया गया है। मामले में डीएम, एसडीएम और पूर्व नगर आयुक्त पर भी गाज गिरी। अब विजिलेन्स जमीन घोटाले की जांच करेगी।
मामला 15 करोड़ की जमीन को 54 करोड़ में खरीदने का है, जिसमें हरिद्वार नगर निगम ने एक अनुपयुक्त और बेकार भूमि को अत्यधिक दाम में खरीदा। न भूमि की कोई तात्कालिक आवश्यकता थी, न ही खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती गई। शासन के नियमों को दरकिनार कर यह घोटाला अंजाम दिया गया।
15 करोड़ की ज़मीन 54 करोड़ में खरीदी
जांच के बाद रिपोर्ट मिलते ही बड़ी कार्रवाई करते हुए हरिद्वार के जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह, पूर्व नगर आयुक्त वरुण चौधरी और एसडीएम अजयवीर सिंह को सस्पेंड कर दिया। साथ ही वरिष्ठ वित्त अधिकारी निकिता बिष्ट, कानूनगों राजेश कुमार, तहसील प्रशासनिक अधिकारी कमलदास, और वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक विक्की को भी निलंबित किया गया।
उत्तराखंड में पहली बार ऐसा हुआ है कि सत्ता में बैठी सरकार ने अपने ही सिस्टम में बैठे शीर्ष अधिकारियों पर सीधा और कड़ा प्रहार किया है। हरिद्वार ज़मीन घोटाले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा लिए गए निर्णय केवल एक घोटाले के पर्दाफाश की कार्रवाई नहीं, बल्कि उत्तराखंड की प्रशासनिक और राजनीतिक संस्कृति में एक निर्णायक बदलाव का संकेत हैं।
पहले चरण में नगर निगम के प्रभारी सहायक नगर आयुक्त रविंद्र कुमार दयाल, अधिशासी अभियंता आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट और अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल को भी सस्पेंड किया गया था। संपत्ति लिपिक वेदवाल का सेवा विस्तार समाप्त कर दिया गया है और उनके खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही के निर्देश दिए गए हैं।
हरिद्वार जिले में जमीन की खरीद-फरोख्त में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं और फर्जीवाड़े की शिकायतें पिछले कुछ समय से सामने आ रही थीं। जांच में इन शिकायतों की पुष्टि होने पर शासन ने यह कड़ा कदम उठाया है। बताया जा रहा है कि घोटाले में करोड़ों रुपये की सरकारी जमीन को निजी हित में ट्रांसफर किया गया और सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं।
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