मुमकिन ही नहीं मोमिन मेरा ज़िक्र सुने और न रोये , ये शब्द आज भी हजरत इमाम हुसैन की याद को हर दिल में ताज़ा किये हुए है !
मोहर्रम की 10 तारीख पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत का दिन कोरोना की गाइडलाइन का पालन करते हुए अकीदत और सादगी के साथ मनाया गया। शहर से देहात तक अकीदतमंदों ने इमाम हुसैन की याद में ताजिए गुरुवार की देर शाम को निकालकर घरों के प्रांगण में रखे। रात में ताजियों को सुपुर्द-ए-खाक किया गया। इस बार भी प्रतिबंध के चलते ताजिया जुलूस नहीं निकाला गया। जबकि अखाड़ा भी नहीं खेला गया। घरों में फ़ातिहाख्वानी और सलाम पेश किया गया।
मुमकिन ही नहीं मोमिन मेरा ज़िक्र सुने और न रोये , ये शब्द आज भी हजरत इमाम हुसैन की याद को हर दिल में ताज़ा किये हुए है ! मज़हब ए इस्लाम और इंसानियत को जिंदा रखने के लिए हजरत इमाम हुसैन ने ईराक के करबला मैदान में यजीद (इस्लाम का दुश्मन) को उसकी तीस हज़ार की फोज के साथ अपने बहतर (72) साथियो की साथ ललकारा और आखरी दम तक लड़ते रहे पर यजीद ने उन्हें अपने साथियों की साथ मिलकर शहीद कर दिया उनके यहाँ तक की उनके प्यारे सफ़ेद घोड़े तक को यजीद ने बुरी तरह क़त्ल कर दिया ! उस वक्त पूरा करबला का मैदान खून से लाल हो गया था ! हजरत इमाम हुसैन ने लोगो की खातिर अपनी कुर्बानी दी जिसके चलते लोगो के दिलो में आज भी उनकी कुर्बानी याद है यही वजह है की आज भी उनकी याद में लोग ताजिया बनाकर अखाडा खेलते हुए जूलूस निकालते है।
इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने में मोहर्रम की दस तारीख को नवासा-ए-रसूल हजरत इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ इराक के कर्बला के मैदान में हक और इंसानियत की खातिर जालिम बादशाह यजीद से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। इमाम हुसैन ने शहीद होना कबूल किया, लेकिन बुराई और झूठ, यजीद की फौज के सामने झुकना कबूल नहीं किया। कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ थे। जबकि यजीद की हजारों की फौज कर्बला के मैदान में थी। यजीद ने उनके परिवार और साथियों पर बहुत जुल्म ढाएं। छोटे बच्चों और महिलाओं को भूखे प्यासे शहीद किया था। तब से हर साल सुन्नी ताजिये निकालकर उनकी शहादत को याद करते हैं। जबकि शिया समुदाय नोहाख्वानी कर मातम मानते हैं।आज हरिद्वार की उपनगरी ज्वालापुर और आस पास के ग्रामीण इलाकों में तजियेदारी की गई।
ज्वालापुर और मुस्लिम शहरी और देहात क्षेत्रों में मोहर्रम को लेकर पुलिस बल तैनात रहा। हालांकि इस बार लोगों ने ताजिए अपने घरों के प्रांगण में ही निकालकर रखें। लेकिन एहतियात के तौर पर पुलिस बल तैनात किया गया था।
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